उन सबके लिए जो देर तक सोना पसंद करते हैं ...........
जाड़े की एक सुबह
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जाड़े की अलस
सर्द सुबह ,
अचानक नींद खुली ,
हटा कर रजाई ,
लेकर अंगड़ाई ,
खुद को शॉल में लपेट
करने प्रकृति से भेंट ,
बाहर निकली |
थोड़ा सिहरी |
पर ज्यों ही
सामने नज़र पड़ी ,
मैं दंग
रह गई खड़ी |
प्रकृति मिली मुझसे
बाँहे फैलाकर |
सूरज की पहली किरण ने
गालों को सहलाया ,
ठंडी हवा ने
बालों को लहराया |
ओस की नन्ही नन्ही बुँदे
क़दमों में बिखरी थीं
मोती बनके |
पाँवों में भीगे दूब की छुअन,
तन मन में
लहर गई सिहरन |
जागा कुछ ऐसा एहसास ,
चखने लगी मैं
गुनगुने ठण्ड की मिठास |
पंछियों के कलरव सुरीले ,
कानों में घुले
मधुर संगीत बनके |
कुदरत ने बिखेरी थी
ऐसी छटा नई सुबह की ,
रोम रोम में भर गई
अद्भुत ताजगी |
बहुत कठिन है
सर्द सुबह में बिस्तर छोड़ना ,
आज अचानक नींद खुल गई
तो जाना ,
आजतक कितना कुछ
खोती रही !
रोज़ आती रही
यह सुबह निराली ,
और मैं मूर्ख ,
नहीं नहीं महामूर्ख
लम्बी तानकर सोती रही ..........!
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सुबह के समय प्रकृति एक नई ऊर्जा लिए होती है....बहुत सुंदर शाब्दिक चित्रण ...
ReplyDeleteजाड़े की सुबह का मनभावन चित्र।
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‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है
बहुत सुंदर .......
ReplyDeleteसर्दी की सुबह का बहुत ही खूबसूरत शाब्दिक चित्रण...आभार समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है!!!
ReplyDeleteजाडे़ की सर्द सुबह सच में बहुत निरली होती है..प्रकृति की ये सुन्दर छटा जो न देख पाया वह वास्तव में अभागा ही होगा...सुन्दर भाव..मेरी नई पोस्ट में आप का स्वागत है...
ReplyDeleteप्रकृति तो हमेशा हमारे लिए बाहें फैलाये खड़ी है!
ReplyDeleteबच्चे तो सुबह सुबह उठते ही हैं स्कूल के लिए ..... प्यारी कविता
ReplyDeletedhanyawad yashwant ji.aapne madad ki.abhi blog ki iss duniya mein bahut kachchi hun.pryaas niranter jaari hai.aage bhi sahayata ki prarthi hun.main comments HINDI mein nahi type ker pati.
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