उन सबके लिए जो देर तक सोना पसंद करते हैं ...........
जाड़े की एक सुबह
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जाड़े की अलस
सर्द सुबह ,
अचानक नींद खुली ,
हटा कर रजाई ,
लेकर अंगड़ाई ,
खुद को शॉल में लपेट
करने प्रकृति से भेंट ,
बाहर निकली |
थोड़ा सिहरी |
पर ज्यों ही
सामने नज़र पड़ी ,
मैं दंग
रह गई खड़ी |
प्रकृति मिली मुझसे
बाँहे फैलाकर |
सूरज की पहली किरण ने
गालों को सहलाया ,
ठंडी हवा ने
बालों को लहराया |
ओस की नन्ही नन्ही बुँदे
क़दमों में बिखरी थीं
मोती बनके |
पाँवों में भीगे दूब की छुअन,
तन मन में
लहर गई सिहरन |
जागा कुछ ऐसा एहसास ,
चखने लगी मैं
गुनगुने ठण्ड की मिठास |
पंछियों के कलरव सुरीले ,
कानों में घुले
मधुर संगीत बनके |
कुदरत ने बिखेरी थी
ऐसी छटा नई सुबह की ,
रोम रोम में भर गई
अद्भुत ताजगी |
बहुत कठिन है
सर्द सुबह में बिस्तर छोड़ना ,
आज अचानक नींद खुल गई
तो जाना ,
आजतक कितना कुछ
खोती रही !
रोज़ आती रही
यह सुबह निराली ,
और मैं मूर्ख ,
नहीं नहीं महामूर्ख
लम्बी तानकर सोती रही ..........!
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