अनोखी सहेली
_____________
विगत दो वर्षों से
वह बनी
मेरी पक्की सहेली,
पर बड़ी ही जिद्दी,
अपनी बात
मनवा कर छोड़ती |
इतने कड़ाके की
हाड़ कंपाती सर्दी,
मोटे रजाई के अंदर
दुबक कर भी,
जब रहती मैं ठिठुरती,
हाथ बाहर निकालने को,
वह करती है मजबूर |
अनवरत जो
चलता रहता है,
विचारों का
मस्तिष्क में सैलाब,
उन्हें कागज़ पर
उतार डालने की
करती है मुझसे जिद्द
पहले डांटती है,
फटकारती है,
करती है अनुरोध
फिर देती है उत्कोच
कोई काम नहीं आती
मेरी ना नुकुर
उठना ही पड़ता है,
मानकर उसकी बात
देना पड़ता है
उसका साथ |
मेरे ठिठुरे हाथों में
वह समाती,
हम दोनों के प्रयास से
मेरी नवीन रचना
जब होती मेरे सामने,
नई कृति की ख़ुशी
भर देती
मेरे अंदर
गुनगुनी गर्मी,
और फिर
वह मुझे देख कर
खिलखिलाती |
विगत दो वर्षों से
जो है बनी
मेरी पक्की सहेली
पर बड़ी ही ज़िद्दी,
मेरी लेखनी ............|
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विगत दो वर्षों से
वह बनी
मेरी पक्की सहेली,
पर बड़ी ही जिद्दी,
अपनी बात
मनवा कर छोड़ती |
इतने कड़ाके की
हाड़ कंपाती सर्दी,
मोटे रजाई के अंदर
दुबक कर भी,
जब रहती मैं ठिठुरती,
हाथ बाहर निकालने को,
वह करती है मजबूर |
अनवरत जो
चलता रहता है,
विचारों का
मस्तिष्क में सैलाब,
उन्हें कागज़ पर
उतार डालने की
करती है मुझसे जिद्द
पहले डांटती है,
फटकारती है,
करती है अनुरोध
फिर देती है उत्कोच
कोई काम नहीं आती
मेरी ना नुकुर
उठना ही पड़ता है,
मानकर उसकी बात
देना पड़ता है
उसका साथ |
मेरे ठिठुरे हाथों में
वह समाती,
हम दोनों के प्रयास से
मेरी नवीन रचना
जब होती मेरे सामने,
नई कृति की ख़ुशी
भर देती
मेरे अंदर
गुनगुनी गर्मी,
और फिर
वह मुझे देख कर
खिलखिलाती |
विगत दो वर्षों से
जो है बनी
मेरी पक्की सहेली
पर बड़ी ही ज़िद्दी,
मेरी लेखनी ............|
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