दर्द ४५ पार का
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कनक छड़ी सी युवती
सामने से थी गुजरी |
पड़ी जो उसके ऊपर उनकी
हसरत भरी निगाहें
और एक निःश्वास निकली
हाय ....................!!!
दिल में एक बिजली सी कौंधी ,
कसक लिए हाज़िर हुई यादें पुरानी |
कितनी खूबसूरत और तन्वंगी
हुआ करती थी उनकी भी काया,
हर एक कोण को देखकर
मन कैसा रहता था भरमाया |
जग जाते थे कितनों के अरमां
बढ़ जाती थी धड़कन |
देखकर सबकी आँखों में
अपना जलवा-ए-हुस्न ,
खिल उठता था दिल
जैसे गुलिस्तां-ए-गुल |
कभी उनकी भी
हुआ करती थी ,
३६,२४,३६ की फ़िगर ,
एक एक इंच की
रहती थी फिकर |
वो ज़माना
गया है गुज़र |
अब तो पीछे पीछे वो
आगे चलती है उनकी उदर!!
उम्र पहुंची पचास के निकट ,
समस्या आई भारी विकट |
कुछ काम नहीं आ रहा कसरत ,
कितना भी वो करें मेहनत |
कभी जिस तन पर सजकर ,
सुशोभित हो उठता था
कोई भी परिधान ,
इस मोटापे ने चूर चूर
कर दिया वो सारा अभिमान !!
शादी ब्याह हुआ ,
हुए जब चार बच्चे ,
उन्हें संभालें या ,
संभाले फ़िगर के लोचे !
हाथ से फ़िसल चुका ,
कभी हुआ करता था ज़माना उनका ............!!!
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कनक छड़ी सी युवती
सामने से थी गुजरी |
पड़ी जो उसके ऊपर उनकी
हसरत भरी निगाहें
और एक निःश्वास निकली
हाय ....................!!!
दिल में एक बिजली सी कौंधी ,
कसक लिए हाज़िर हुई यादें पुरानी |
कितनी खूबसूरत और तन्वंगी
हुआ करती थी उनकी भी काया,
हर एक कोण को देखकर
मन कैसा रहता था भरमाया |
जग जाते थे कितनों के अरमां
बढ़ जाती थी धड़कन |
देखकर सबकी आँखों में
अपना जलवा-ए-हुस्न ,
खिल उठता था दिल
जैसे गुलिस्तां-ए-गुल |
कभी उनकी भी
हुआ करती थी ,
३६,२४,३६ की फ़िगर ,
एक एक इंच की
रहती थी फिकर |
वो ज़माना
गया है गुज़र |
अब तो पीछे पीछे वो
आगे चलती है उनकी उदर!!
उम्र पहुंची पचास के निकट ,
समस्या आई भारी विकट |
कुछ काम नहीं आ रहा कसरत ,
कितना भी वो करें मेहनत |
कभी जिस तन पर सजकर ,
सुशोभित हो उठता था
कोई भी परिधान ,
इस मोटापे ने चूर चूर
कर दिया वो सारा अभिमान !!
शादी ब्याह हुआ ,
हुए जब चार बच्चे ,
उन्हें संभालें या ,
संभाले फ़िगर के लोचे !
हाथ से फ़िसल चुका ,
कभी हुआ करता था ज़माना उनका ............!!!
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ये तो Ripley's Believe it or Not से भी बड़ा सच है!! सर्दियों में इस तरह की कवितायें कुछ हंसी और मुस्कराहट की गर्मी बिखेर जाती हैं!! मजेदार!!
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