शुक्रिया
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उसने सोचा होगा
बेवफाई से उसकी
टूट जाऊँगी मैं |
उसे क्या पता था
उसकी दग़ा ने ही
मुझे कर दिया है जिंदा |
रोने को मैंने
नहीं ढूंढा कोई भी कांधा |
मेरे एहसासों ने ही
दिया मुझको सहारा |
रोई तो थी ज़ार ज़ार
अकेले में,
पर बहते हुए अश्कों की
हर बूंद से एक एक
नज़्म बनते गए |
जहां ने इतना सराहा उनको
कि अब तो फुर्सत ही नहीं,
कि सोचने बैठूं,
क्या किया था उसने |
ठोकरों में भी होती है
बला की ताकत |
ठोकर मारने वाला एक दिन
खुद होता है शर्मिंदा|
आज जो मुकाम हासिल
कर लिया मैंने,
सब उसीकी बदौलत|
अब तो एक ही लफ्ज़ है
उसके लिए बाकि
सामने आये तो कह दूँ
"शुक्रिया"|
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