शुक्रिया
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उसने सोचा होगा
बेवफाई से उसकी
टूट जाऊँगी मैं |
उसे क्या पता था
उसकी दग़ा ने ही
मुझे कर दिया है जिंदा |
रोने को मैंने
नहीं ढूंढा कोई भी कांधा |
मेरे एहसासों ने ही
दिया मुझको सहारा |
रोई तो थी ज़ार ज़ार
अकेले में,
पर बहते हुए अश्कों की
हर बूंद से एक एक
नज़्म बनते गए |
जहां ने इतना सराहा उनको
कि अब तो फुर्सत ही नहीं,
कि सोचने बैठूं,
क्या किया था उसने |
ठोकरों में भी होती है
बला की ताकत |
ठोकर मारने वाला एक दिन
खुद होता है शर्मिंदा|
आज जो मुकाम हासिल
कर लिया मैंने,
सब उसीकी बदौलत|
अब तो एक ही लफ्ज़ है
उसके लिए बाकि
सामने आये तो कह दूँ
"शुक्रिया"|
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बहुत अच्छी पंक्तियाँ और उतनी ही सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति...
ReplyDelete(पुनश्च: कृपया 'वर्ड वेरिफिकेशन' हटा दें..इससे व्यवधान पैदा होता है)
This one is marvellous mom.
ReplyDeleteबहते हुए अश्कों की
ReplyDeleteहर बूंद से एक एक
नज़्म बनते गए |bahut sunder.....
ठोकरों में भी होती है
ReplyDeleteबला की ताकत |
निश्चित ही!
सुन्दर भाव!