भाग्योदय
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राह में पड़ा था मैं
ठोकरें खाने को ,
जाने क्या सूझी
उस सयाने को !
मुझे उठाया,धोया,सहलाया,
और एक पेड़ के नीचे बैठाया |
एक फूल मेरे ऊपर रखा ,
कुछ रंग लगा दिए ,
एक अगरबत्ती जलाई ,
मुस्कुराया,और चला गया
आती है याद,कुछ समय बाद ,
आते गए लोग,कैसा संयोग!
सबने शीश नवाई,पूजा अर्चना भी की,
फिर जिसकी थी जमींदारी,
उसने यहाँ मंदिर भी बनवा दी |
अब नियुक्त हुआ एक पंडित ,
उसे कहाँ पता था
कभी एक टुकड़ा था मैं खंडित |
अब तो नियम से लगते हैं भोग
बँटता है प्रसाद |
आने लगे रेले पर रेले ,
ख़ास तिथियों पर
लगा करते हैं मेले |
कुछ सालों के बाद ,
फिर वही सयाना आया |
मेरी ठाठ देख
मुस्काया !
मुझे छेड़ा ,
"देखा !ये हैं ईश्वर के बन्दे
कितने होते हैं अंधे !"
मैं कृतज्ञ था,उससे कहा
"एक अगरबत्ती और फूल ने
कमाल दिखाया ,
तुमने मुझ पत्थर को
भगवान् बनाया |"
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राह में पड़ा था मैं
ठोकरें खाने को ,
जाने क्या सूझी
उस सयाने को !
मुझे उठाया,धोया,सहलाया,
और एक पेड़ के नीचे बैठाया |
एक फूल मेरे ऊपर रखा ,
कुछ रंग लगा दिए ,
एक अगरबत्ती जलाई ,
मुस्कुराया,और चला गया
आती है याद,कुछ समय बाद ,
आते गए लोग,कैसा संयोग!
सबने शीश नवाई,पूजा अर्चना भी की,
फिर जिसकी थी जमींदारी,
उसने यहाँ मंदिर भी बनवा दी |
अब नियुक्त हुआ एक पंडित ,
उसे कहाँ पता था
कभी एक टुकड़ा था मैं खंडित |
अब तो नियम से लगते हैं भोग
बँटता है प्रसाद |
आने लगे रेले पर रेले ,
ख़ास तिथियों पर
लगा करते हैं मेले |
कुछ सालों के बाद ,
फिर वही सयाना आया |
मेरी ठाठ देख
मुस्काया !
मुझे छेड़ा ,
"देखा !ये हैं ईश्वर के बन्दे
कितने होते हैं अंधे !"
मैं कृतज्ञ था,उससे कहा
"एक अगरबत्ती और फूल ने
कमाल दिखाया ,
तुमने मुझ पत्थर को
भगवान् बनाया |"
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ग्रेटेस्ट शोमैन राज कपूर की ड्रीम-फिल्म सत्यम, शिवम, सुन्दरम की थीम ही यही थी और फिल्म की शुरुआत में इसी थीम को बहुत ही सुंदरता से पिक्चराइज किया गया है!!!
ReplyDeleteआपकी कविता भी बहुत ही सुन्दर है.. और आपने इसे बड़े ही लॉजिकल ढंग से प्रस्तुत किया है!!!